केरल के जिस मुसलिम लीग को सेक्युलर बता रहे हैं राहुल गांधी, उसका क्या है जिन्ना कनेक्शन

- Post By The India Saga
राहुल गांधी ने मोहम्मद अली जिन्ना की पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को सेक्युलर बताते हुए अपनी पार्टी के गठबंधन का बचाव किया है। अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने वाशिंगटन डीसी में नेशनल प्रेस क्लब के दौरान ये बात कही। राहुल गांधी ने मुस्लिम लीग को पूरी तरह सेक्युलर बताया और कहा कि इसमे कुछ भी नॉन सेक्युलर नहीं है।
बीजेपी ने किया पलटवार
राहुल गांधी के इस बयान पर बीजेपी ने पलटवार करते हुए कहा कि जो पार्टी मजहब के आधार पर देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार है, वह सेक्युलर कैसे हो सकती है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने राहुल गांधी के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग और केरल वाली मुस्लिम लीग एक ही हैं या इनमें कोई अंतर है। दिलचस्प बात ये है कि राहुल गांधी ने जिस आईयूएमएल को सेक्युलर बताया है, पंडित नेहरू उसके गठन के खिलाफ थे। वह नहीं चाहते थे कि आजादी के बाद भारत में मुस्लिम लीग जैसी कोई पार्टी बनें।
क्या है जिन्ना की मुस्लिम लीग की कहानी
दरअसल, अलग पाकिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन चलाने वाली ऑल इंडिया मुस्लिम लीग और केरल की मुस्लिम लीग एक नहीं हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ढाका में तब हुई थी जब भारत में ब्रितानी हुकूमत थी। दूसरी तरफ, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की स्थापना आजादी के बाद 1948 में तत्कालीन मद्रास (आज के चेन्नई) में हुई थी। ये चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त पार्टी है जो मुख्यता केरल की राजनीती में सक्रिय है।
हालांकि, आईयूएमएल की जड़ें कहीं न कहीं जिन्ना की बनाई मुस्लिम लीग में ही हैं। आपको बता दें कि देश के विभाजन के कुछ समय बाद ही ऑल इंडिया मुस्लिम लीग को भंग कर दिया गया था। लेकिन उसके कुछ समय बाद ही तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान (जो अब पाकिस्तान) में मुस्लिम लीग ने और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में ऑल पाकिस्तान अवामी मुस्लिम लीग ने उसकी जगह ले ली। इसी तरह भारत में उसकी जगह इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने ले ली।
बांग्लादेश में बनी अवामी लीग और पाकिस्तान में मुस्लिम लीग को समझें
बंटवारे के बाद मुस्लिम लीग पाकिस्तान में बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी। पाकिसतान में शुरुआती 6 प्रधानमंत्री मुस्लिम लीग से ही बने थे। हालांकि उनका कार्यकाल ज्यादा नहीं रहा। सैन्य तानाशाह जनरल अयूब खान ने जब मार्शल लॉ लागू किया तो मुस्लिम लीग को भंग कर दिया।
बाद में अयूब ने ही मुस्लिम लीग को फिर से राजनीतिक दल के तौर पर संगठित किया जो कई बार टूटी लेकिन आज पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज) के तौर पर वजूद में है। दूसरी तरफ, पूर्वी पाकिस्तान में अवामी मुस्लिम लीग ने शेख मुजिबुर्रहमान की अगुआई में बांग्लादेश की मुक्ति का आंदोलन चलाया। बांग्लादेश की मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना उसी अवामी लीग से हैं।
नेहरू क्यों थे मुस्लिम लीग के पुनर्गठन के खिलाफ
पंडित नेहरू आजादी के बाद मुस्लिम लीग को पुनर्जीवित किए जाने के विचार के खिलाफ थे। कुछ मीड़िया रिपोर्टस के मुताबिक, उन्होंने तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन से कहा था कि वह मुहम्मद इस्माइल को मुस्लिम लीग को फिर से बनाने के इस विचार को छोड़ने की सलाह दें। नेहरू का विचार था कि भारतीय मुसलमानों को मुस्लिम लीग जैसी पोलिटिकल पार्टियों की कोई जरूरत नहीं है।
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