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Jagannath Rath Yatra 2023: क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा?

Jagannath Rath Yatra 2023

ओडिशा के पुरी में हर साल भगवान श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। इस त्योहार को मनाने और रथ यात्रा को देखने लाखों लोग देश-विदेश से आते है। इस बार  श्री जगन्नाथ की 146वीं रथ यात्रा निकाली जा रही है। ओडिशा के पुरी में इस रथ यात्रा को देखने के लिए लाखों लोगों की भीड़ पहुंच चुकी है। यह वैष्णव मंदिर श्रीहरि के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। पूरे साल इनकी पूजा मंदिर के गर्भगृह में होती है, लेकिन आषाढ़ माह में तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा के जरिए इन्हें गुंडिचा मंदिर लाया जाता है।

 

रथ यात्रा को निकालने की महत्व

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से तीन दिव्य रथों पर निकाली जाती हैं। बता दें कि इस यात्रा के दौरान सबसे आगे श्री बलभद्र का रथ, उनके पीछे बहन सुभद्रा और सबसे पीछे श्री जगन्नाथ पुरी का रथ होता है। इस साल जगन्नाथ यात्रा 20 जून से शुरू हो रही है और 1 जुलाई तक चलेगी।

 

रथ यात्रा के पीछे की स्टोरी
पद्म पुराण, नारद पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी पहुंचे और यहां सात दिन ठहरे। तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं। उसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही लोगों को दर्शन देते हैं।

 

तीनों रथों की पहचान 

इस यात्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाये जाते हैं। गरुड़ ध्वज/कपिल ध्वज: भगवान जगन्नाथ का रथ 'गरुड़ ध्वज' या 'कपिल ध्वज' कहलाता है। जिसमें लाल व पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग होता है। 

 

दरअसल भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ हैं, इसलिए इसे गरूड़ ध्वज कहा गया है, मान्यता है कि वे इस रथ की रक्षा करते हैं। रथ पर जो ध्वज है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी या नंदीघोष भी कहते हैं। यह रथ 16 पहियों वाला होता है, साथ ही 13.5 मीटर ऊंचा होता है। 

 

तालध्वज: बलराम का रथ तालध्वज के नाम से जाना जाता है। यह लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का होता है। इस रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व माने गये हैं, वहीं जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है।

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